निस्ठुरी को याद मा
मैले के गलती गरे तेस्को सज्जा आज म भोग्दै छु मैले त उलाई बिर्शिन शकिन र जिन्दगि मा कैले पनि बिर्शिन होला येही हो मेरो अधुरो प्रेम कथा म आज पनि तर्पी राको छु त्यो निस्ठुरी को याद मा
सोमवार, 27 फ़रवरी 2017
बुधवार, 25 सितंबर 2013
ना रोअले रोआत बा, ना हंसले हसात बा.
मत पूछी बोझ जिंदगी के, कईसे ढोआत बा.
कर देहलस बेभरम महंगाई आदमी के,
उधार लेके जिनगी के गाडी खींचात बा.
कबो बाढ़ आइल त कबो सुखाड़ ले गइल,
खेत त हर साल निमने बोआत बा.
अब त मुंह फेर लेत बिया अपने मेहरारू,
पॉकेट में जइसे पईसा ओरात बा.
आजकल समझे ना केहू मजबूरी आदमी के,
कहत बा अच्छा बुरा जेकरा जवने सोहात बा.
ना निमने में जश बा, ना बउरे में बरकत,
सरसों खाँ कोल्हू में आदमी पेरात बा.
लागे ना निक तनको शहर में आके.
हार गईनी मनवा के लाख समझा के.
पर बही जाला अंखिया से लोरवा के धार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
भूललो से भूले नहीं बचपन के दिनवा.
नाचेला अंखिया के आगे हर सीनवा.
तब चाहे पड़े लूः चाहे पड़े खूब ठंडा.
बंद नहीं होखे कभी आपन गुली-डंडा.
आवते ही फागुन खूब होखे ठिठोली.
दादी, चाची, भौजी सबे से खेली सन होली.
दूपहरिया में जाई सन गउवा के ओरा.
बाबू साहब के बगीचा में तुडे टिकोड़ा.
शाएद अहिसन दिन कवनो जाव न खाली.
चिडअवला पर धोबिनिया देव न गाली.
दशहरा में भाई हो डाईन के डर से.
माई भेजो काजर लगा कर के घर से.
केकरा घरे कहिया आई-जाई बारात.
भले याद ना रहे सबक मगर ई रहे याद.
वो दिन स्कूल से १२ बजे आ जाईसन भाग के.
फिर देखिसन नाच खूब, रात भर जाग के.
भले एकरा खातिर खाइसन आगिला दिने मार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
फ़ोन नाही रहे तब लिखल जाव पतिया
गउवा के सीधा-सादा लोगवा के बतिया.
हो जाव कबो कहा सुनी खेतवा के मेढ़ पर.
वोकर होखे पंचायत बड़का पीपल के पेड़ तर.
तबो लोग में होखे झमेला पर मिटे ना भाईचारा.
तनी आसा बात पर जूट जाव गाँव सारा.
वो बेरा जवार में हमार गावँ रहे अईसन अकेला
जहा लागे रामनवमी,मुहर्रम आ तेरस के मेला.
सुस्ताव लोग गर्मी में फुलवारी में जाके.
ओही जग लेटे लो पेड़ तर गमछा बिछा के.
आवे जब परब छठ, पिड़ीया, जिवितिया.
मेहरारू सब गउवा के गावसन गीतिया.
जवन आनंद मिले गवुआ के खेत-खलिहान में.
उ बात कहा बाटे शहर के पार्क-उधान में.
अब त चमक धमक ये शहर के लागेला खाली-खाली.
खिचेला हमरा मन के डोर फिर गउवा के हरियाली.
कहे, का हो तू भूला गईल अ जनम-धरती के प्यार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
सुख दुःख के मौसम त आवत जात रहेला.
दिल रोवेला, अंखिया से बहेला आंसू.
कुछ देर अउर ठहर जाए के, कहेला आंसू.
पर हालात के आगे बेबस, मजबूर होखेलेन .
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलेन.
मत पूछी केतना निर्मम होला घर छोड़े के दुःख.
माई, बाबूजी औलाद से आपन मुंह मोड़े के दुःख.
त्याग जनम-धरती के हर त्याग से बड़ ह.
पर भूख पापी पेट के हर इच्छा के जड़ ह.
उ जीवन में कुछ कर गुजरे के लालसा से भरपूर होखेलेन.
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलेन.
बितल बतिया बचपन के रोके ले हमरा पांव के.
किरिया खियावे हमसे की मत छोड़अ अपना गांव के.
मगर मजबूरी इन्सान के हर किरिया पर भारी ह.
लेखा-जोखा जीवन के भगवन के चित्रकारी ह.
फर्ज से केहू के बाप, भाई, बेटा त केहू के सिंदूर होखेलेन.
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलेन.
धतूर जइसन कडुआ गुलाब लागत बा.
करीं झूठे बड़ाई त खुबे गच बा लोग,
साँच बोलला पर मुंह में जाब लागत बा.
बाबू माँगत बाडेन बुढऊ बाबू जी से पानी,
अब त बाप नौकर आ बेटा नवाब लागत बा.
अरे..मुंह मारी एईसन ज़माना के भाई,
जेईमें लोग के अमृत से बढ़िया शराब लागत बा.
मत पूछी त बढ़िया होई संस्कार के दशा,
बबुनी के भर देह के कपड़ा ख़राब लागत बा.
लद गईल जुग ईमानदारी के "नूरैन",
अब त पाई-पाई के भाई में हिसाब लागत बा.
रही निक बोली-बचन त,मील जाई सबकुछ,
खाली जोड़ गाठ से नाही,निबह पावेला रिश्ता,
ना चाही के भी पड़ जाला जरूरत तीसरईत के,
कबो कबो लही जाला अन्हरा के लाठी,
भूखईला में खईला पर, त, भर जाला पेटवा,
"नूरैन" गिर के परबत-पहाड़ से बच जाला आदमी,
कहे के लोग त आपन बा पर मन से बा पराया जी ,
एह कलयुग में बाप के हाथे, बेटी के इज्जत लूटत बा.
अबकी बार एगो दिया तोहरा याद में जराएब.
कलिख अपना मन के ओकरा रौनक से मिटाएब.
कुछ ना मिलल नफरत कर के, हो गइनी अकेला.
लोर भरल अंखिया से देखनी, हम दुनिया के मेला.
छलकत अंखिया के गगरी के, हँसी से सजाएब.
अबकी बार एगो दिया तोहरा याद में जराएब.
घर भइल मोरा खँड़हर, डहके हमार अंगना.
ई उहे दर ह जहाँ कबो बाजे तोहार कंगना.
रंग-रोगन कर के, पुरनका चमक फिर लौटाएब.
अबकी बार एगो दिया तोहरा याद में जराएब.
ख़तम भइल मन के नगरी से मोह-माया आ प्यार.
एके गो आगन में उठल कई कई गो दीवार.
अब त औरत करे नौकरी,मरद अगोरस घर.
बाबू जी से पहिले ही बेटी खोज लेव वर.
हर क्षेत्र में मरद से आगे भईली जनाना.
केतना बदल गइल ज़माना.
मत पूछी बोझ जिंदगी के, कईसे ढोआत बा.
कर देहलस बेभरम महंगाई आदमी के,
उधार लेके जिनगी के गाडी खींचात बा.
कबो बाढ़ आइल त कबो सुखाड़ ले गइल,
खेत त हर साल निमने बोआत बा.
अब त मुंह फेर लेत बिया अपने मेहरारू,
पॉकेट में जइसे पईसा ओरात बा.
आजकल समझे ना केहू मजबूरी आदमी के,
कहत बा अच्छा बुरा जेकरा जवने सोहात बा.
ना निमने में जश बा, ना बउरे में बरकत,
सरसों खाँ कोल्हू में आदमी पेरात बा.
लागे ना निक तनको शहर में आके.
हार गईनी मनवा के लाख समझा के.
पर बही जाला अंखिया से लोरवा के धार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
भूललो से भूले नहीं बचपन के दिनवा.
नाचेला अंखिया के आगे हर सीनवा.
तब चाहे पड़े लूः चाहे पड़े खूब ठंडा.
बंद नहीं होखे कभी आपन गुली-डंडा.
आवते ही फागुन खूब होखे ठिठोली.
दादी, चाची, भौजी सबे से खेली सन होली.
दूपहरिया में जाई सन गउवा के ओरा.
बाबू साहब के बगीचा में तुडे टिकोड़ा.
शाएद अहिसन दिन कवनो जाव न खाली.
चिडअवला पर धोबिनिया देव न गाली.
दशहरा में भाई हो डाईन के डर से.
माई भेजो काजर लगा कर के घर से.
केकरा घरे कहिया आई-जाई बारात.
भले याद ना रहे सबक मगर ई रहे याद.
वो दिन स्कूल से १२ बजे आ जाईसन भाग के.
फिर देखिसन नाच खूब, रात भर जाग के.
भले एकरा खातिर खाइसन आगिला दिने मार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
फ़ोन नाही रहे तब लिखल जाव पतिया
गउवा के सीधा-सादा लोगवा के बतिया.
हो जाव कबो कहा सुनी खेतवा के मेढ़ पर.
वोकर होखे पंचायत बड़का पीपल के पेड़ तर.
तबो लोग में होखे झमेला पर मिटे ना भाईचारा.
तनी आसा बात पर जूट जाव गाँव सारा.
वो बेरा जवार में हमार गावँ रहे अईसन अकेला
जहा लागे रामनवमी,मुहर्रम आ तेरस के मेला.
सुस्ताव लोग गर्मी में फुलवारी में जाके.
ओही जग लेटे लो पेड़ तर गमछा बिछा के.
आवे जब परब छठ, पिड़ीया, जिवितिया.
मेहरारू सब गउवा के गावसन गीतिया.
जवन आनंद मिले गवुआ के खेत-खलिहान में.
उ बात कहा बाटे शहर के पार्क-उधान में.
अब त चमक धमक ये शहर के लागेला खाली-खाली.
खिचेला हमरा मन के डोर फिर गउवा के हरियाली.
कहे, का हो तू भूला गईल अ जनम-धरती के प्यार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
काहे मुंह बना के जियत बानी.
मावुर घुट-घुट पियत बानी..
मानत बानी की दुकान जिनगी के समस्या से भरपूर बा.
पर हँसे दी महाराज होंठवा के, आखिर वोकर कौन कसूर बा.
सुख दुःख के मौसम त आवत जात रहेला.
कबो हंसवेला त,कबो रुलावात रहेला.
मानत बानी अपना मुड़ी पर किस्मत के हाथ नइखे.
पर खुद से रूठ गईल भी कौनो अच्छा बात नइखे.
बस कदम बढाई इ मत देखि, की मंजिल केतना दूर बा.
हँसे दी महाराज होंठवा के, आखिर वोकर कौन कसूर बा.
जब होनी के अनहोनी में आदमी ढाल नइखे सकत.
जब किस्मत में लिखल बात के टाल नइखे सकत.
तब लोर बहवला से अच्छा बा,खिलखिला के हसल.
की मन रहे तरोताजा मुरझाव ना उत्साह के फसल.
ये चार दिन के जिनगी में कौना बात के गुरुर बा..
हँसे दी महाराज होंठवा के, आखिर वोकर कौन कसूर बा.
दिल रोवेला, अंखिया से बहेला आंसू.
कुछ देर अउर ठहर जाए के, कहेला आंसू.
पर हालात के आगे बेबस, मजबूर होखेलेन .
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलेन.
मत पूछी केतना निर्मम होला घर छोड़े के दुःख.
माई, बाबूजी औलाद से आपन मुंह मोड़े के दुःख.
त्याग जनम-धरती के हर त्याग से बड़ ह.
पर भूख पापी पेट के हर इच्छा के जड़ ह.
उ जीवन में कुछ कर गुजरे के लालसा से भरपूर होखेलेन.
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलेन.
बितल बतिया बचपन के रोके ले हमरा पांव के.
किरिया खियावे हमसे की मत छोड़अ अपना गांव के.
मगर मजबूरी इन्सान के हर किरिया पर भारी ह.
लेखा-जोखा जीवन के भगवन के चित्रकारी ह.
फर्ज से केहू के बाप, भाई, बेटा त केहू के सिंदूर होखेलेन.
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलेन.
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अब त निमने बतिया लोग के ख़राब लागत बा.
धतूर जइसन कडुआ गुलाब लागत बा.
करीं झूठे बड़ाई त खुबे गच बा लोग,
साँच बोलला पर मुंह में जाब लागत बा.
बाबू माँगत बाडेन बुढऊ बाबू जी से पानी,
अब त बाप नौकर आ बेटा नवाब लागत बा.
अरे..मुंह मारी एईसन ज़माना के भाई,
जेईमें लोग के अमृत से बढ़िया शराब लागत बा.
मत पूछी त बढ़िया होई संस्कार के दशा,
बबुनी के भर देह के कपड़ा ख़राब लागत बा.
लद गईल जुग ईमानदारी के "नूरैन",
अब त पाई-पाई के भाई में हिसाब लागत बा.
हर समय सुख के सुतार ना मिलेला.
सब केहू से दुःख में, उबार ना मिलेला.
रही निक बोली-बचन त,मील जाई सबकुछ,
मऊरइला से एगो सुई भी उधार ना मिलेला.
खाली जोड़ गाठ से नाही,निबह पावेला रिश्ता,
जले मन से दोसरा मन के बिचार ना मिलेला.
ना चाही के भी पड़ जाला जरूरत तीसरईत के,
जब अपने घर में आपन आधार ना मिलेला.
कबो कबो लही जाला अन्हरा के लाठी,
बिना करम के भाग्य भी बरियार ना मिलेला.
भूखईला में खईला पर, त, भर जाला पेटवा,
पर खखाइल जिभिया के तनको करार ना मिलेला.
"नूरैन" गिर के परबत-पहाड़ से बच जाला आदमी,
पर नज़र से गिरला पर पोखरा इनार ना मिलेला.
कविता : टूटत बा बिश्वास के धग्गा
टूटत बा बिश्वास के धग्गा, बहुते जल्दी टूटत बा.
गैर लोगवा आपन होता, आपन लोगवा छूटत बा.
जरत बा रिश्ता के दिया अब मतलब का तेल से,
गैर लोगवा आपन होता, आपन लोगवा छूटत बा.
जरत बा रिश्ता के दिया अब मतलब का तेल से,
गरज न होखे पूरा त लोग बात-बात में रुठत बा.
घर के बात बतावल जाता दोसरा गावं के लोग से,
तीसरा क चक्कर में पड़ के दोसरा के घर फूटत बा.
मत पूछी त बढ़िया होई, अब हमदर्दी के बात जी,
शादी अउर सराधे में अब हित नात भी जुटत बा.
घर के बात बतावल जाता दोसरा गावं के लोग से,
तीसरा क चक्कर में पड़ के दोसरा के घर फूटत बा.
मत पूछी त बढ़िया होई, अब हमदर्दी के बात जी,
शादी अउर सराधे में अब हित नात भी जुटत बा.
केतना घर के चूल्हा चौका बिना जरले सूत जाला.,
कही पे लोगवा भोग-बिलास में लाखों रुपया छिटत बा.कहे के लोग त आपन बा पर मन से बा पराया जी ,
एह कलयुग में बाप के हाथे, बेटी के इज्जत लूटत बा.
अबकी बार एगो दिया तोहरा याद में जराएब.
कलिख अपना मन के ओकरा रौनक से मिटाएब.
कुछ ना मिलल नफरत कर के, हो गइनी अकेला.
लोर भरल अंखिया से देखनी, हम दुनिया के मेला.
छलकत अंखिया के गगरी के, हँसी से सजाएब.
अबकी बार एगो दिया तोहरा याद में जराएब.
घर भइल मोरा खँड़हर, डहके हमार अंगना.
ई उहे दर ह जहाँ कबो बाजे तोहार कंगना.
रंग-रोगन कर के, पुरनका चमक फिर लौटाएब.
अबकी बार एगो दिया तोहरा याद में जराएब.
ना रहल पुरनका लोग, ना रहल जुग पुराना.
भरल बाज़ार में झूठा मारे, सच्चाई पर ताना.
केतना बदल गइल ज़माना.
अब लड़की राखे केश छोटा, लडिका राखस लम्बा.
लव मैरिज़ के घटना पर लोग होखे नाही अचम्भा.
बीतल जुग चिठ्ठी के, जबसे आ गईल मोबाइल.
कम कपड़ा में बाहर निकलल बन गईल स्टाइल.
लाज शरम के रीत हो भईया हो गइल पुराना.
केतना बदल गइल ज़माना.
धरम के दुकान यहाँ चलावे लगलेंन अधर्मी.
संस्कार के शिक्षा, देबे लगलेंन बेशर्मी.
पूजा पाठ के बेरा चले, हर घर में अब टीवी.
मरद सम्भालस चुल्हा-चउका, बेड परोसस बीबी.
मंदिर-मस्जिद में बाजेला रोज फ़िलिम गाना.
केतना बदल गइल ज़माना.
भरल बाज़ार में झूठा मारे, सच्चाई पर ताना.
केतना बदल गइल ज़माना.
अब लड़की राखे केश छोटा, लडिका राखस लम्बा.
लव मैरिज़ के घटना पर लोग होखे नाही अचम्भा.
बीतल जुग चिठ्ठी के, जबसे आ गईल मोबाइल.
कम कपड़ा में बाहर निकलल बन गईल स्टाइल.
लाज शरम के रीत हो भईया हो गइल पुराना.
केतना बदल गइल ज़माना.
धरम के दुकान यहाँ चलावे लगलेंन अधर्मी.
संस्कार के शिक्षा, देबे लगलेंन बेशर्मी.
पूजा पाठ के बेरा चले, हर घर में अब टीवी.
मरद सम्भालस चुल्हा-चउका, बेड परोसस बीबी.
मंदिर-मस्जिद में बाजेला रोज फ़िलिम गाना.
केतना बदल गइल ज़माना.
ख़तम भइल मन के नगरी से मोह-माया आ प्यार.
एके गो आगन में उठल कई कई गो दीवार.
अब त औरत करे नौकरी,मरद अगोरस घर.
बाबू जी से पहिले ही बेटी खोज लेव वर.
हर क्षेत्र में मरद से आगे भईली जनाना.
केतना बदल गइल ज़माना.
रविवार, 26 मई 2013
माया माया भन्थे म त् माया केहो आज बल्ल थाहा पाए
आफु भन्दा बढी माया गर्छु मलाई कतिको गर्छौ बल्ल थाहा पाए
मायामा जिवन अर्पित गर्ने हरु धेरै देखे
संसारले गर्दा होइन बल्कि मायालुले गर्दा बल्ल थाहा पाए
संसारले सयौ बचन भन्दा दुख लाग्दैन
मायाले एक बचन भन्दा मुटु टुक्रा हुन्छ बल्ल थाहा पाए
love you forever भन्ने धेरै देखे
पिठ पछारि खंजर घोप्दो रैछ बल्ल थाहा पाए
आफु भन्दा बढी माया गर्छु मलाई कतिको गर्छौ बल्ल थाहा पाए
मायामा जिवन अर्पित गर्ने हरु धेरै देखे
संसारले गर्दा होइन बल्कि मायालुले गर्दा बल्ल थाहा पाए
संसारले सयौ बचन भन्दा दुख लाग्दैन
मायाले एक बचन भन्दा मुटु टुक्रा हुन्छ बल्ल थाहा पाए
love you forever भन्ने धेरै देखे
पिठ पछारि खंजर घोप्दो रैछ बल्ल थाहा पाए
बुधवार, 27 मार्च 2013
अरबी युवती र नेपाली युवाको बियोगान्त सत्य प्रेम कथा
साउदीका हरेक पत्र-पत्रिकामा नुरको आत्महत्याको खबरले म आश्चर्यमा परेँ म
अफिस भित्रैको एउटा क्याबिनमा कम्युटरमा ब्यस्त रहन्थे । तर आज अचानक
पत्रिका परेको नजरले अचम्मैबनायो । हुन त मलाइ पनि कहाँ अरबी पढ्न आउथ्यो र
? राजको मोबाइलमा देखेको फोटो को कारणले चिनेको मात्रै हो । मैले
प्रतक्ष्य देखेको भने थिइन ? कालो बुर्का { साउदीमा महिलाले लगाउने कालो
लुगा } लगाएर यात्रारत हुन्छन् यिनीहरु । रुखले त बरु आफ्नो पात बोक्राले
ढाक्दैनतर उनीहरुको शरीरको कुनै ठाँउ पनि ढाक्नबाँकी राख्दैनन् ।राजलाइ
झुन्ड्याएर मारिएको महिना दिन नहुँदै नुरको आत्महत्याले म मात्र होइन नुरका
परिवार पनि अचम्मित भए होलान् । आज नुरको आत्महत्याको खबरले राजको अन्धकार
पुर्ण दिन अनी उसलाइ गुमाएको पलझलझल आँखामा आउन थाल्यो । साउदी अरबको एक
प्रतिष्ठित कम्पनिमा हामी दुबै जना सँगै काम गर्थ्यौ । हामी मतलब राज र म ।
हामी साउदीको मुटु राजधानी यानीकी रियादमा थियौ । राज सप्लाइ डिपार्टमा
कार्यरत थियो । उनी सप्लाइको क्रममा साउदीका घर-घरमा जानु पर्थ्यो । त्यसै
क्रममा राजको भेट नुर सँग भएको थियो । राज सँधै उनको बारेमा बताउथे । नुरको
प्रशंसा गरेर कहिले पनि नथाक्ने राजको ब्यवहार देखेर म आफै थकित हुन्थे
त्यस्तै साथको खोजीमा । राजको ब्याख्यानमा म आफै अलमल्ल हुन्थेँ । आखीर
नुरमा के छ यस्तो ? मलाइ राजले फोटो देखाए पनि म रुपमा कहिल्यै बिस्वास
गर्दैन थेँ । रुपमा किन मर्छस् राज ? सुन्दर फुल भित्रको राग-अनुराग अनी
बिषादीको पनि अध्यन गर्न जरुरी हुन्छ । हुन त तेरो रोजाइ नराम्रो त हुन
सक्दैन तर पनि होस् गर राज यहाँको कानुन तैले सुनेकै छस् । फेरी हकिकतमा
देख्न नपरोस्। राज भावुक बनेर भन्थे “बिशाल,मायामा ज्यानै दिन परे पनि म
तयार छु । उनले दिएको यती माया नै मेरो जिन्दगीको पुर्ण खुसी बन्नेछ । हेरौ
जे लेखेको छ यो भाग्यमा त्यही हुन्छ । मलाइ यही मर्न लेखेको छ भने म
पराइकै माटोमा मरौला । हो मलाइ मेरो स्वच्छ पशुपतीमा ठाँउ नमिल्ला,बाग्मती
को पानीले चोखीन नपाइएला, चन्दन सँगै जल्न नपाइएला तर मायामा दिएको ज्यान
कहाँ खेर जान्छ र बिशाल ? हुन त म अभागी ठहरीनेछु बिदेशको माटोमा पुरीँदा
तर पनि माया भनेको माया हो । नेपाल रहँदा सम्म कोही कसैमा आँखा नपरे पनि
यहाँ उनीमा आँखा पर्नु मेरो भाग्यकोखेल हो बिशाल जे होगा देखा जायगा ।।।
नुर र राजको प्रेम देखेर मलाइ पनि डाहा हुन्थ्यो । मलाइ पनि प्रेममा डुब्न
मन लाग्थ्यो । मरभुमी राप भित्र पनि राजको चमकता र मुस्कानले म सँधै
प्रफुल्ल हुन्थे ।उनिहरुको प्रेम झाँगिदै थियो । कहिले भेटेर त कहिले फोन
बाट नै लामो समयसम्म उनिहरुको कुराकानी चल्थ्यो । म कहिले काँही जिस्काउथेँ
“राज तेरो त काम तमाम भो, भाउजु सँग मलाइ नि कुरा गरान त यार। म पनि यसो
सुनौ मेरी भाउजुको स्वर जुन स्वरमा राज अल्झिएको छ । मेरो कुरा सुने पछी
राजले फोन लाउड स्पिकरमा राखेर सुनाउथ्यो , उता बाट आवाज आउथ्यो “ मिन हुवा
?”(को ऊ) “ राजले नरम भएर जवाफ दिन्थ्यो:“सदीग”(साथी)”ब िशाल । । उनीहरुको
कुरा कती खेर सकिन्थ्यो मैलै कहिले पनि थाहा पाइन । म आफ्नै दुनियामा
ब्यस्त हुन्थे उनीहरु आफै भित्र हराउथे । एक कान दुइ कान मैदान । उनीहरुको
प्रेम नुरको घरपरिवारले थाहा पाए । उनका बाबा आमाले पुलीसमा कम्प्लेन गरे ।
ठुलो रडाको नै मच्चियो । अन्त्यमा राजलाइ फाँसी सुनाइयो । फाँसी हुने
अन्तिम रात राजले एउटा पत्र लेखेको थियो र मलाइ भनेको थियो । राज यो पत्र
एक चोटी पढेर नुरलाइ दे है । मैले किन हेर्नु राज ? भन्दा राज भन्दै थिए ,
सायद तैले नै उल्था गर्नु पर्ला बिशाल । मेरो आँखा भरी आँसु टम्म थिए । म
डाँको छाडेर रुन पनि सकि रहेको थिइन । तर राजको आँखामा भने डर,त्रास,पिर
भनेको पटक्कै थिएन । माया प्रतक्ष झल्किन्थ्यो । राजको पत्र लिएर म राज सँग
अब अन्तिम पटकभेटेर फर्किदै छु भन्ने थाहा हुँदा मेरोमुटुले ठाँउ छाडी
रहेको थियो । मैले भगवानलाइ लाख बिन्ती गरेँ तर पनि भगवानले राजलाइ बचाउला
जस्तो लागेन। म मन कठोर बनाउदै गाडी सम्म आँए र आफ्नो गाडी स्टार्ट गरेर
अपार्ट सम्म आँए । मैले हतार हतार राजको पत्र खोँले अनी पढ्न थाँले । ‘मेरी
नुर जुनी जुनी जिउनु ल । तिमी त अन्तिम पटक भेट्न पनि आइनौ । तर पनि मलाइ
दुख मन छैन । किनकी म तिमी जन्मेको माटोमा हाम्रो माया बिसर्जन गर्दैछु ।
तिमीले देखाएको सपनाको महलमा म जिन्दगी बिसर्जन गर्दैछु । भेट्दा,कुरा
गर्दाको तिम्रो ब्यवहारले म तिमीमा नै समर्पित हुन्थेँ अनी अनौठो सपना
देख्थे । तिमीलाइ मेरो सिमली भुवा उड्ने गाँउमा लगेर कोइलीको स्वर सँग
दोहोरी खेलाउने ठुलो धोको थियो । तिमीलाइ थाहा छ नुर ? मेरो घर पहाडमा छ ।
प्रकृतीको धनी मेरो गाँउ छहरा,पहरा,लहराल े भरीपुर्ण छ । तिमीलाइ थाहा नै छ
होला । पढेकी पनि हौली, म त सगरमाथाको देशको मान्छे । तिमीलाइ सगरमाथा
घुमाउने रहर त रहरै भयोनुर । तर पनि मेरो ठम्याइ छ । त्याँहाको प्राकृतीक
सौन्दर्यहरु तिमीलाइ देखेर मोहित हुने थिए । कोइलीले आफ्नो स्वर निकाल्नु
पहिले तिम्रो स्वर सुन्न चाहन्थ्यो । अनी म तिम्रा हात समाएर सबैको सामु
भन्थे- “आना हेब ईन्त नुर”(म तिमीलाइ माया गर्छु नुर ।) हुन त तिम्रो र
मेरो अन्तिम भेट यही पत्रमा हुनेछ । भाग्यमा भए प्रेम अमर भए अर्को जुनीमा
भेटिनेछ । आस छ भर छैन यो भाग्यको । भगवानको मर्जी न हो । जे चाहन्छ उही
हुन्छ । तिमी भगवान भन्दा बुझ्दिनौ होला । तिमीले भगवानलाइ “अल्ला” भनेर
चिन । भगवान भन या अल्ला भन एक हुन मेरो नजरमा । तिम्रा बाबाले म हिन्दु
भएकै कारणले मलाइ नकारेका हुन् मलाइ थाहा छ । तिम्रा बाबाले धर्म परिवर्तन
गर भनेर नभनेको पनि होइन । तर मैले चाहिन त्यो । किनकी धर्म परिवर्तनमा के
नै छ र ? म जहाँ जन्मिए, जुन संस्कारमा जन्मिए, उही तरीका ले बाँचे । कसको
निधारमा लेखीएको हुन्छ यो मुश्लिम,यो क्रीश्चीयन,यो हिन्दु ……. भनेर ।
हामीले मान्ने, प्रार्थना गर्ने शैली फरक हो तर भगवान एक हुन् । तिम्रो
बाबालाइ सुनाइ देउ नुर । मेरो भगवान मानवता हो । तिम्रो बाबाको जस्तो अल्ला
मेरो भगवान होइन । हाम्रो प्रेम लाइ आड बनाएर तिम्रो बाबाले लडेको
धर्मयुद्ध होइन त्यो त अहम् हो आफ्नो एरीयामा कुकुर पनि शेर हुने । धर्म
फरक भएकै कारणले म जस्ता कती मेरा नेपाली दाजुभाइ दिदीबहिनी हरु यहाँ
हेपीएको चेपीएको तितो यथार्थ छ । मान्छे आखीर मान्छे हो नी नुर, जात,धर्म,
स्तर त हामीले बनाएकै त हो । तिमी नै भनत जन्मनु भन्दा अगाडी तिमी कुन
धर्मको थियौ ? काटे रगत त रातै आउछ नी हैन र नुर ? कि हिन्दु को रगत रातो
अनी मुश्लिम,क्श्चीय नको सेतो,हरियो हुन्छ की हिन्दुको हरियो सेतो रगत
हुन्छ तिम्रो बाबालाइ सोध है । हुन त तिम्रो बाबालाइ प्रेमको महत्व के थाहा
? सँधै पैसाकै पछाडी कुद्छन् । पैसा दिएर धर्म परिवर्तन गर भन्छन् ।
पैसाले माया पाइने भए संसारमा सबै पैसावालहरुपुर्ण हुन्थे । उपहार
दिँदैमा,कुनै एक बिशेष दिनमा मायाजाहेर गरेर माया गरेको भन्ने सोच्ने
तिम्रो बाबालाइ माया गर्न सिकाउ नुर । तिमीःलाइ त माया गर्न आउछ नी है ?
तिमी सँग भेट हुने यही अन्तीम हो । त्यसैले मलाइ यो पत्र टुङ्ग्याउन मन
छैनअनी चाहन्न पनि तर पनि लामो गन्थनमा फस्दा लेख्दा लेख्दै अन्त्यमा तिमी
सँग बिदा माग्न पनि नपाइयला की झै लाग्छ । त्यसैले हाम्रो भेट अब सक्नु
पर्छ मैले । यो बेग रोक्नु पर्छ मैले जुन बेगमा म भावना पोखी रहेछु ।
हाइयाक्अल्ला या नुर,मासलाम !! राज !! दाइ के छ हो आजको हट न्युज ? म झसङ्ग
भए । सँगै काम गर्ने भाइ रहेछ ।आजको न्युज बबाल छ कुन्जन । के छ दाजु सुनौ
न त हामी पनि । नुरले आत्महत्या गरीछे यार । को नुर ? राजकी नुर ? अँ हो ।
त्यसले यतीका पछी किन आत्महत्या गरी त ? थाहा छैन यार । मैले केही थाहा
पाउन सकेको छैन । कारण के हो कसो हो अब पत्रीका पढ्न जानेको भए पो । एक छिन
है मेल आएको रहेछ । अफिसीयल होला । मेल नयाँ ठेगाना बाट आएको थियो । मैले
अल्मलीदै खोँले । अरबीमा लेखीएको भएर मैले पढ्न जानीन र कुन्जनलाइ भने ।
यार भाइ कसरी पढ्ने यो मेल अरबीमा छ त ? उसले हाँस्दै भन्यो यार दाइ हजुर
पनि, नेट बाट ट्रान्सलेट गर्नु न । यो जमानामा पनि यति कुराको के चिन्ता ?
मैले आज खासै सोच्न सकिरहेको थिइन अनी हो त नी है भन्दै ट्रान्सलेट गरेर
पढ्न थाँले । ‘नमस्ते देवर बाबु सञ्चै हुनु हुन्छ ? मैले राजको बारेमा आज
मात्र थाहा पाँए । मलाइ फोन,नेट सबै तिर बन्देज लगाइएको थियो । आज मात्रै
सबै थोक बाट फुकुवा गरीएको हो । मलाइ मेरो साथीले एउटा भिडियो हेर्छस् भनेर
दिएको थियो । त्यो भिडियोमा राजलाइ झुन्ड्याएर मारीएको रहेछ । जुन कुरा
मैले सहन सकिन । भिडियो हेर्नु लगत्तै राजको पत्र पनि पाँए । उहाँ सँग मैले
पनि पत्रमा भेँटे । बिशाल बाबु हजुरहरुले त मलाइ निष्ठुरी भन्ने सोच्नु
भएको होला । त्यसैले मैले हजुरलाइ मेरो बारेमा भन्ने यही एउटा मेलको साहारा
लिँए । म निष्ठुरी होइन बिशाल बाबु । मैले पहिलो पटक कसैलाइ प्रेम गरेको
थिँएत त्यो राज थियो । अनी गर्नेछु त त्यो पनि राजलाइ । सत्यता थाहा नपाउदा
सम्म त राज सँग भेट्ने आसा जिँउदो थियो तर सबै थाहा पाए पछी मैले जिउनुको
अर्थ देखीन । म मेरो जिन्दगी अब अरुको नाम कसरी गरौ बिशाल बाबु ? मेरा आमा
बाबा चाहनु हुन्छ म अरु कसै सँगबिबाह गरौ । तर राजलाइ सुम्पियको यो तन मन
कसरी म जिउदै मरेर अरुलाइ सुम्पिदै राजको मायालाइ अपहेलना गरौ ? त्यसैले
मैले आत्महत्या गर्ने निर्णय गरेँ । मैले गल्ती त गरीन नी है बिशाल बाबु ?
बिशाल बाबु मैले हजुरलाइ नदेखे पनि हजुरको बारेमा राजको ओठ बाट सबै सुनेको
छु । त्यसैले हजुरले निर्दोष ठान्नु भयो भने म राजलाइ उ गएको ठाँउमा गएर
मेरो मायाको सर्जिम बक्ने हजुरलाइ देखाउन सक्नेछु । मलाइ माफ गर्नुस् ल
बिशाल बाबु ।। उही हजुरको हुन नसेकी, हजुरले फोनमा जिस्काउने, हजुरकी भाउजु
‘नुर’ !!! (फेसबुक पेज नेपाल दर्पणबाट साभार गरिएको ।)” साउदीका हरेक
पत्र-पत्रिकामा नुरको आत्महत्याको खबरले म आश्चर्यमा परेँ म अफिस भित्रैको
एउटा क्याबिनमा कम्युटरमा ब्यस्त रहन्थे । तर आज अचानक पत्रिका परेको नजरले
अचम्मैबनायो । हुन त मलाइ पनि कहाँ अरबी पढ्न आउथ्यो र ? राजको मोबाइलमा
देखेको फोटो को कारणले चिनेको मात्रै हो । मैले प्रतक्ष्य देखेको भने थिइन ?
कालो बुर्का { साउदीमा महिलाले लगाउने कालो लुगा } लगाएर यात्रारत हुन्छन्
यिनीहरु । रुखले त बरु आफ्नो पात बोक्राले ढाक्दैनतर उनीहरुको शरीरको कुनै
ठाँउ पनि ढाक्नबाँकी राख्दैनन् ।राजलाइ झुन्ड्याएर मारिएको महिना दिन
नहुँदै नुरको आत्महत्याले म मात्र होइन नुरका परिवार पनि अचम्मित भए होलान्
। आज नुरको आत्महत्याको खबरले राजको अन्धकार पुर्ण दिन अनी उसलाइ गुमाएको
पलझलझल आँखामा आउन थाल्यो । साउदी अरबको एक प्रतिष्ठित कम्पनिमा हामी दुबै
जना सँगै काम गर्थ्यौ । हामी मतलब राज र म । हामी साउदीको मुटु राजधानी
यानीकी रियादमा थियौ । राज सप्लाइ डिपार्टमा कार्यरत थियो । उनी सप्लाइको
क्रममा साउदीका घर-घरमा जानु पर्थ्यो । त्यसै क्रममा राजको भेट नुर सँग
भएको थियो । राज सँधै उनको बारेमा बताउथे । नुरको प्रशंसा गरेर कहिले पनि
नथाक्ने राजको ब्यवहार देखेर म आफै थकित हुन्थे त्यस्तै साथको खोजीमा ।
राजको ब्याख्यानमा म आफै अलमल्ल हुन्थेँ । आखीर नुरमा के छ यस्तो ? मलाइ
राजले फोटो देखाए पनि म रुपमा कहिल्यै बिस्वास गर्दैन थेँ । रुपमा किन
मर्छस् राज ? सुन्दर फुल भित्रको राग-अनुराग अनी बिषादीको पनि अध्यन गर्न
जरुरी हुन्छ । हुन त तेरो रोजाइ नराम्रो त हुन सक्दैन तर पनि होस् गर राज
यहाँको कानुन तैले सुनेकै छस् । फेरी हकिकतमा देख्न नपरोस्। राज भावुक बनेर
भन्थे “बिशाल,मायामा ज्यानै दिन परे पनि म तयार छु । उनले दिएको यती माया
नै मेरो जिन्दगीको पुर्ण खुसी बन्नेछ । हेरौ जे लेखेको छ यो भाग्यमा त्यही
हुन्छ । मलाइ यही मर्न लेखेको छ भने म पराइकै माटोमा मरौला । हो मलाइ मेरो
स्वच्छ पशुपतीमा ठाँउ नमिल्ला,बाग्मती को पानीले चोखीन नपाइएला, चन्दन सँगै
जल्न नपाइएला तर मायामा दिएको ज्यान कहाँ खेर जान्छ र बिशाल ? हुन त म
अभागी ठहरीनेछु बिदेशको माटोमा पुरीँदा तर पनि माया भनेको माया हो । नेपाल
रहँदा सम्म कोही कसैमा आँखा नपरे पनि यहाँ उनीमा आँखा पर्नु मेरो
भाग्यकोखेल हो बिशाल जे होगा देखा जायगा ।।। नुर र राजको प्रेम देखेर मलाइ
पनि डाहा हुन्थ्यो । मलाइ पनि प्रेममा डुब्न मन लाग्थ्यो । मरभुमी राप
भित्र पनि राजको चमकता र मुस्कानले म सँधै प्रफुल्ल हुन्थे ।उनिहरुको प्रेम
झाँगिदै थियो । कहिले भेटेर त कहिले फोन बाट नै लामो समयसम्म उनिहरुको
कुराकानी चल्थ्यो । म कहिले काँही जिस्काउथेँ “राज तेरो त काम तमाम भो,
भाउजु सँग मलाइ नि कुरा गरान त यार। म पनि यसो सुनौ मेरी भाउजुको स्वर जुन
स्वरमा राज अल्झिएको छ । मेरो कुरा सुने
मंगलवार, 5 मार्च 2013
तिम्रो यादमा
आयो तिम्रो याद आयो फेरी तिम्रो याद आयो ।
तिमीलाई सम्झी साझ देखि जुनेलिरात आयो । ।
तिमीलाई नसम्झी नकुनै दिन आयो।
। तिमीलाई सम्झी
कुल्टीफ़ेर्दै रात बितायो ।
प्रशन गर्छन मसित इ आकाशका तारा हरु ।
आज फेरी तिमि किन न निन्दायौ । ।
ओठमा हाँसो छैन आँखामा निन्द्रा छैन ।
भत-भत पोल्छ मुटुमेरो आज फेरी किन मुटु दुखायौ। ।
दिन दुगुना रात चौगुना लाग्न थाल्यो ।
प्रिय तिम्रो यादमा खाना खानपनि भुल्न थाल्यो । ।
तिमीलाई पनि तेस्तै होला प्रिय मा देखि टाढा बस्दा ।
तिम्रो याद आएर मलाई धुरु -धुरु रुवायो । ।
आउछ तिम्रो सम्झना भिज्छ रातमा सिरहना ।
कति लेखौ तिम्रो यादमा फेरी मुटुमा काढा झैँ बीजायो। ।
आऊ फर्की चाडै अब अरु बस्न सक्दिन ।
चांडो आऊ प्रिय तिम्रो यादले मलाई पागल बनायो । । कमलेश कुमार
बुधवार, 3 अक्टूबर 2012
गुरुवार, 12 अप्रैल 2012
साथीको कर्तव्य
साथीको कर्तव्य कहिले पनि बिर्शिनु हुदैन र साथीले गरेको गून पनि भुल्नु हुदैन किन भन्ने साथी भनेको एउटा एस्तो सब्द
हो जुन कुनै चिज अथवा बस्तुमा तुलना गर्नु सक्दैन! जसरी कि भन्छ सुखमा सम्पति दुखमा साथीले साथ दिन्छ होरैछ !
हो जुन कुनै चिज अथवा बस्तुमा तुलना गर्नु सक्दैन! जसरी कि भन्छ सुखमा सम्पति दुखमा साथीले साथ दिन्छ होरैछ !
तर येसैमा कुनै साथी धोखेबाज पनि हुन्छ र भन्छ कि साथीको लागि जान पनि दिन सक्छु pare भने जान पनि लिन सक्छु जब तपाई सिट पैसा सिधिन्छ तब बोलाउदा पनि बोलौदैन र न सुनने गरि बाटो काट्छ र एउटा एस्तो साथी हुन्छ जो हामी लै जति खेर पनि सोध पुछ गर्छ कि खान खायौ कि खाएनौ भनेर र घुमन गए भने तापको पैसा खादैन र तपाई लाई पनि खर्च गर्न दिदैन अनि भन्छ साथी हामी हरु येसरी पैसा खर्च गर्नु हुदैन बरु यो पैसा हामी आ-आफ्ना बुवा आमा लाई गएर देव कि हामी हरु लाई पढन लेखन मा सजिलो हुन्छ यो पैसाले कपि कलम कीन् पाइन्छ र आमा बुवा पनि खुशी हुन्छ हामी हरु पढौ र असल मान्छे बनौ र साथी को नाता जुनी जुनी काईम राखौ हामी एक आरक लाई कहिले पनि न बिर्सौ
साथी एस्तो हुनु पर्छ कि राम्रो विचार को होस् राम्रो बानि होस् अरु लाई देखेर डाह नगरोस र अरुको धन सम्पति को लोभ नग्रोश मेरो छ एउटा येस्तै साथी उसको नाम बिक्रम वाग्ले हो उसको घर झापा जिल्ला भद्रपुर मा छ उसको जति प्रशंशा गरेपनि कम पर्छ विक्रमले मलाई धेरै सहयोग गरेको छ
जब मलाई कोहि साथ दिएको थिएँ त्यो बेला उले मलाई धेरै सहयोग गर्यो हामी दुई जना साथमा विदेश पनि गयौ
संगै कम्पनीमा काम पनि गर्थे संगै रूम मा पनि बस्थे खान पनि साथमै खान्थे अनि त्यो पिरो खादैन थियो अलि कति पिरो हुदा मा सिट झाग्र गर्थ्यो कि त जानी जानी पिरो हाले को फेरी एक छिनमा हामी दुई जना दाजु भाई जस्तै बस्थे उ मेरो लागि सबै सित झाग्रा गर्थ्यो
मा त्यहाँ मधेशी भने २ जना मात्र थिए तर पनि उनीहरुले मलाई हेपेर कहिले कुरा गरेन बरु मा सीत अरु मिलेर basthiyo कहिले kahi त jhagra पनि गर्थे फेरी एक छिनमै हास्न खेल्न थाल्थे हामी हरु एक अर्का लाई भाई जस्तै मान्थे एक दिन को samay जब मा कुनै कारणले जेल जानु परेको थियो त्यो बेल्ला bikramle कति पैसा kharch garer kampny मा फोन गर्थ्यो र सबै जना काम band गर्ने bichar गरे कि जब सम्म कमलेश लाईbahir nikaldain tab सम्म हामी हरु काम गर्दिन हामी हरु ४८ जना थियौ एउटा kampny को थियौ र अरु kerla हरु पनि थियो त्यो मान्छे हरुले पनि काम band garchhu ntra कमलेश लाई nikaldew भनेर
म त्यो साथी हरुले गरेको गुण कहिले बिर्सिदिन उसमै एक जना साथी विजय साह भन्ने थियो त्यो मान्छे लाई भाई भन्दा बढी मान्थे बढी माया गर्थे dinai पिछु मा सित जुश खाने पैशा maangthe र म दिन्थे कैले पनि म उ सित हिसाब मागेन जब एक दिन त्यो मान्छे सित रुद्रा भन्ने भाई आफ्नो फोन को पैसा मांगे विजय एक महिना मा ८००-९०० रियाल को फोन गर्थ्यो नेपालमा कुनै केटीलाई उ २ बर्ष बस्दा २०००० नेपाली मात्र पठाको थियो घरमा
अनि रुद्रा को पैशा ६४० रियाल बाकी रहेछ तेही पैसा रुद्राले मन्ग्यो तर उ सित पैसा थिएन र म को येहा आएर रुन्न थाल्यो कि भाई कमलेश म सित आइले पैसा छैन म अर्को महिना मा तिर्छु तर उ मान्दैन तिमि गएर भनदें कि उलेअर्को महिना तिर्छ अनि मैले भने कि कहाँ बाट लौछौ तिमि अर्को महिना पैसा तिमि त महिना म़ा १५ दिन कम गर्छु १५ दिन बसेर खान्छौअनि उले भने कि तिमि मेरो बैंक कार्ड राख र तिमि नै पैसा झिकेर देव मैले उसको बैंक कार्ड लिए र राखे र म सित बाचा पनि गरे कि अब म त्यो केटि लाई फोन गर्दिन भनेर र मेरो पैसा पनि थियो उ माथि ४०० रियाल खान को पैसा
अरु एउटा खेम भने साथी थियो झापा को उसको पेटमा पथरी थियो त्यो मान्छे राम्रो थियो तर विजय को चक्कर मा परेर त्यो पनि बिग्र्यो उसको पेटमा पथरी थियो र कम्पनी मा गएर भने कि मलाई घर पठैदेव नत अप्रेसन गारैदेव अनि कम्पनीले भने कि आधा पैसा म दिन्छु र आधा त आफै तिर्नु पर्छ तर खेम सित पनि थिएन पैसा त्यस पछी हामी हरु सबै साथी भाई हरु मिलेर उसको लागि पैसा चन्दा उठायो कसैले २० कसैले ५०-१००-२००- सम्म दियो र उलाई उपचारको लागि पठाए कम्पनी मा तर उनि हरु कम्पनी मा नगएर भागेछ सबै पैसा लिएर अब मलाई येहा अप्ठ्यारो पर्यो कि रुद्रा को पैसा तिर्नु छ उसको बैंक कार्ड पनि कम्पनीले लोक गरिदियो मेरो पैसा पनि दिएन सबै मिलाएर नेपाल को २१००० हजार नेपाली लगेर भाग्यो चन्दा उठाए १८०० रियाल नेपाल को ३८००० हजार लिएर टाप भयो करिब १ महिना पछी फोन गरे मलाई र भन्ने कि तिमि चिन्ता नालेव मा तिम्रो पैसा तिर्दिन्छु अग्लो महिनामा र मलाई भेटन आइज भनेर भन्यो मा पनि गए ठिकै छ पैसा दिन्छु भन्दै छ र साथी पनि अनि मा गए र मैले १०० रियाल मात्र गोजीमा लिएर गए मलाई संका लग्यो कि फेरी पैसा maangchh कि भनेर तेय्हा गए पछी भेटे खाना पनि खाए होटल मा उसको साथी पनि आको थियो लास्टमा मलाई भन्छ कि मा सिट पैसा छैन बरु अलिकति अरु देन सापट मैले भने म सित पनि छैन पैसा बरु १०० रियाल छ यो ले कि खान को पैसा म तिर्दिन्छु अनि मैले खान को पैसा तिरेर १० रियाल बाकी थियो उ पनि उले khoser लग्यो कि मलाई गाडी भाधा दे भनेर अनि तेस पछी उ फेरी गायब भयो फेरी २ महिना पछी फोन गरे कि आउँ भेट्न लाई अनि मैले भने कि पैसा दिनछौ भने आउछु नत्र आउदिन मेरो काम छ अनि उले भने कि छैन पैसा मा सित घर गएर दिन्छु म जेल मा छिर्नु पर्छ घर जना लाई अनि म गए गए र उलाई भने त येहा तिर्न सकिनस घरमा कहाँ बाट दिन्छस अनि उले मलाई भने कि म भिखारी को छोरो हैन म घर जानु बितिकै तेरो घरमा दिन्छु अनि मैले भने कि त एती अमिर को छोरो छसभने किन आको विदेश घर मै बस्दा भैहल्थे नि अनि उले भने कि म घर मा धेरै बिग्रे को थिए तेसै ले आको अनि मैले भने कि येहा आएर सुध्रिश त अनि तेस्मै थियो एउटा साथी बलिराम चौधरी भन्ने उले म माथि कति बिस्वाश गरे र मलाई भने कमलेश तपाई मगर भाई शित पैशा लिएर मेरो घर मा मेरो बुढी को नाम मा पठाइदिने म अरु सहर मा जान्छु मेरो ट्रान्सफर भएको छ अनि मैले उसको पैसा १ महिना पछी उसको बुद्धिको नाम मा पथैदिये हामी हरु जैले पनि मिलेर बसथियौ र बस्छु तपाई हरु पनि मिलेर बस्नु है !
मेरो साथी हरु को नामे येसरी छ
बिक्रम-धरमा- हरि -बिस्नु- नबिन- राकेश -ज्ञान- दिपक१- दिपक२- सागर- चोकबहादुर नुछे -सिताराम- इन्द्र- अर्जुन- भेष मगर- किशोरी- सुरेश- कृष्ण- गंगा- भान्जा भने - बलिराम- खेम- रुद्र- चिरन- गोबिन्द- रमेश- जुजु- सुनिल- बिर्ख राज
त्यहाँ कम गर्ने साथीहरुलाई सम्झी रहेउ र samjhinchhu jiwan bhari
मेरा प्यारा साथी बिक्रम वाग्ले i love you from botum of my heart i love you my all friends
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