बुधवार, 25 सितंबर 2013

ना रोअले रोआत बा, ना हंसले हसात बा.
मत पूछी बोझ जिंदगी के, कईसे ढोआत बा.

कर देहलस बेभरम महंगाई आदमी के,
उधार लेके जिनगी के गाडी खींचात बा.

कबो बाढ़ आइल त कबो सुखाड़ ले गइल,
खेत त हर साल निमने बोआत बा.

अब त मुंह फेर लेत बिया अपने मेहरारू,
पॉकेट में जइसे पईसा ओरात बा.

आजकल समझे ना केहू मजबूरी आदमी के,
कहत बा अच्छा बुरा जेकरा जवने सोहात बा.

ना निमने में जश बा, ना बउरे में बरकत,
सरसों खाँ कोल्हू में आदमी पेरात बा.


लागे ना निक तनको शहर में आके.
हार गईनी मनवा के लाख समझा के.
पर बही जाला अंखिया से लोरवा के धार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.

भूललो से भूले नहीं बचपन के दिनवा.
नाचेला अंखिया के आगे हर सीनवा.
तब चाहे पड़े लूः चाहे पड़े खूब ठंडा.
बंद नहीं होखे कभी आपन गुली-डंडा.
आवते ही फागुन खूब होखे ठिठोली.
दादी, चाची, भौजी सबे से खेली सन होली.
दूपहरिया में जाई सन गउवा के ओरा.
बाबू साहब के बगीचा में तुडे टिकोड़ा.
शाएद अहिसन दिन कवनो जाव न खाली.
चिडअवला पर धोबिनिया देव न गाली.
दशहरा में भाई हो डाईन के डर से.
माई भेजो काजर लगा कर के घर से.
केकरा घरे कहिया आई-जाई बारात.
भले याद ना रहे सबक मगर ई रहे याद.
वो दिन स्कूल से १२ बजे आ जाईसन भाग के.
फिर देखिसन नाच खूब, रात भर जाग के.
भले एकरा खातिर खाइसन आगिला दिने मार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.

फ़ोन नाही रहे तब लिखल जाव पतिया
गउवा के सीधा-सादा लोगवा के बतिया.
हो जाव कबो कहा सुनी खेतवा के मेढ़ पर.
वोकर होखे पंचायत बड़का पीपल के पेड़ तर.
तबो लोग में होखे झमेला पर मिटे ना भाईचारा.
तनी आसा बात पर जूट जाव गाँव सारा.
वो बेरा जवार में हमार गावँ रहे अईसन अकेला
 जहा लागे रामनवमी,मुहर्रम आ तेरस के मेला.
सुस्ताव लोग गर्मी में फुलवारी में जाके.
ओही जग लेटे लो पेड़ तर गमछा बिछा के.
आवे जब परब छठ, पिड़ीया, जिवितिया.
मेहरारू सब गउवा के गावसन गीतिया.
जवन आनंद मिले गवुआ के खेत-खलिहान में.
उ बात कहा बाटे शहर के पार्क-उधान में.
अब त चमक धमक ये शहर के लागेला खाली-खाली.
खिचेला हमरा मन के डोर फिर गउवा के हरियाली.
कहे, का हो तू भूला गईल अ जनम-धरती के प्यार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.



काहे मुंह बना के जियत बानी.
मावुर घुट-घुट  पियत  बानी..
मानत बानी की दुकान जिनगी के समस्या से भरपूर बा.
पर हँसे दी महाराज होंठवा के, आखिर वोकर कौन कसूर बा.

सुख दुःख के मौसम त आवत जात रहेला.
कबो हंसवेला त,कबो रुलावात रहेला.
मानत बानी अपना मुड़ी पर किस्मत के हाथ नइखे.
पर खुद से रूठ गईल  भी कौनो अच्छा बात नइखे.
बस कदम बढाई इ मत देखि, की मंजिल केतना दूर बा.
हँसे दी महाराज होंठवा के, आखिर वोकर कौन कसूर बा.
जब होनी के अनहोनी में आदमी ढाल  नइखे  सकत.
जब किस्मत में लिखल बात के टाल नइखे  सकत.
तब लोर बहवला से अच्छा बा,खिलखिला के हसल.
की मन रहे तरोताजा मुरझाव ना उत्साह के फसल.
ये चार दिन के जिनगी में कौना बात के गुरुर बा..
हँसे दी महाराज होंठवा के, आखिर वोकर कौन कसूर बा.

  



दिल रोवेला, अंखिया से बहेला आंसू.
कुछ देर अउर ठहर जाए के, कहेला आंसू.

पर हालात के आगे बेबस, मजबूर होखेलेन .
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलेन.

मत पूछी केतना निर्मम होला घर छोड़े के दुःख.
माई, बाबूजी औलाद से आपन मुंह मोड़े के दुःख.
त्याग जनम-धरती के हर त्याग से बड़ ह.
पर भूख पापी पेट के हर इच्छा के जड़ ह.

उ जीवन में कुछ कर गुजरे के लालसा से भरपूर होखेलेन.
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलेन.

बितल बतिया बचपन के रोके ले हमरा पांव के.
किरिया खियावे हमसे की मत छोड़अ अपना गांव के.
मगर मजबूरी इन्सान के हर किरिया पर भारी ह.
लेखा-जोखा जीवन के भगवन के चित्रकारी ह.

फर्ज से केहू के बाप, भाई, बेटा त केहू के सिंदूर होखेलेन.
जब एक परदेशी अपना घर से दूर होखेलेन.

 

 

 

 

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अब त निमने बतिया लोग के ख़राब लागत बा.
धतूर जइसन कडुआ गुलाब लागत बा.

करीं झूठे बड़ाई त खुबे गच बा लोग,
साँच बोलला पर मुंह में जाब लागत बा.

बाबू माँगत बाडेन बुढऊ बाबू जी से पानी,
अब त बाप नौकर आ बेटा नवाब लागत बा.

अरे..मुंह मारी एईसन ज़माना के भाई,
जेईमें लोग के अमृत से बढ़िया शराब लागत बा.

मत पूछी त बढ़िया होई संस्कार के दशा,
बबुनी के भर देह के कपड़ा ख़राब लागत बा.

लद गईल जुग ईमानदारी के "नूरैन",
अब त पाई-पाई के भाई में हिसाब लागत बा.

 

हर  समय  सुख के सुतार ना मिलेला.
सब केहू से दुःख में, उबार ना मिलेला.

रही निक बोली-बचन त,मील जाई सबकुछ,
मऊरइला से एगो सुई भी उधार ना मिलेला.

खाली जोड़ गाठ से नाही,निबह पावेला रिश्ता,
जले मन से दोसरा मन के बिचार ना मिलेला.

ना चाही के भी पड़ जाला जरूरत तीसरईत के,
जब अपने घर में आपन आधार ना मिलेला. 

कबो कबो लही जाला अन्हरा के लाठी,
बिना करम के भाग्य भी बरियार ना मिलेला.

भूखईला में खईला पर,  त,  भर जाला पेटवा,
पर खखाइल जिभिया के तनको करार ना मिलेला. 

"नूरैन" गिर के परबत-पहाड़ से बच जाला आदमी,
पर नज़र से गिरला पर पोखरा इनार ना मिलेला.

       कविता : टूटत बा बिश्वास के धग्गा

टूटत बा बिश्वास के धग्गा, बहुते जल्दी टूटत बा.
गैर लोगवा आपन होता, आपन लोगवा छूटत बा.
जरत बा रिश्ता के दिया अब मतलब का तेल से,
गरज न होखे पूरा त लोग बात-बात में रुठत बा.
घर के बात बतावल जाता दोसरा गावं के लोग से,
तीसरा क चक्कर में पड़ के दोसरा के घर फूटत बा.
मत पूछी त बढ़िया होई, अब हमदर्दी के बात जी,
शादी अउर सराधे में अब हित नात भी जुटत बा.
केतना घर के चूल्हा चौका बिना जरले सूत जाला.,
कही पे लोगवा भोग-बिलास में लाखों रुपया छिटत बा.
कहे के लोग त आपन बा पर मन से बा पराया जी ,
एह कलयुग में बाप के हाथे, बेटी के इज्जत लूटत बा.








अबकी बार एगो दिया तोहरा याद में जराएब.
कलिख अपना मन के ओकरा रौनक से मिटाएब.
कुछ ना मिलल नफरत कर के, हो गइनी अकेला.
लोर भरल अंखिया से देखनी, हम दुनिया के मेला.
छलकत अंखिया के गगरी के, हँसी से सजाएब.
अबकी बार एगो दिया तोहरा याद में जराएब.
घर भइल मोरा खँड़हर, डहके हमार अंगना.
ई उहे दर ह जहाँ कबो बाजे तोहार कंगना.
रंग-रोगन कर के, पुरनका चमक फिर लौटाएब.
अबकी बार एगो दिया तोहरा याद में जराएब.






ना रहल पुरनका लोग, ना रहल जुग पुराना.
भरल बाज़ार में झूठा मारे, सच्चाई पर ताना.
                          केतना बदल गइल ज़माना.

अब लड़की राखे केश छोटा, लडिका राखस लम्बा.
लव मैरिज़ के घटना पर लोग होखे नाही अचम्भा.
बीतल जुग चिठ्ठी के, जबसे आ गईल  मोबाइल.
कम कपड़ा में बाहर निकलल बन गईल स्टाइल.
लाज शरम के रीत हो भईया हो गइल पुराना.
                          केतना बदल गइल ज़माना.

धरम के दुकान यहाँ चलावे लगलेंन अधर्मी.
संस्कार के शिक्षा, देबे लगलेंन बेशर्मी.
पूजा पाठ के बेरा चले, हर घर में अब टीवी.
मरद सम्भालस चुल्हा-चउका, बेड परोसस बीबी.
मंदिर-मस्जिद में बाजेला रोज फ़िलिम  गाना.
                            केतना बदल गइल ज़माना.

ख़तम भइल मन के नगरी से मोह-माया आ प्यार.
एके गो आगन में उठल कई कई गो दीवार.
अब त औरत करे नौकरी,मरद अगोरस घर.
बाबू जी से पहिले ही बेटी खोज लेव वर.
हर क्षेत्र में मरद से आगे भईली जनाना.
                            केतना बदल गइल ज़माना.